
23 मार्च 1931 का वह काला दिन जब ब्रिटिश सरकार ने एक साथ तीन लोगों को फांसी दी। जिसमें एक नाम था भगत सिंह। भगत सिंह को जब फांसी हुई उस वक्त उनकी उम्र महज 23 साल की थी। उनकी चाहत थी कि ब्रिटिश हाथों में जकड़ा हुआ गुलाम भारत आजाद हो जाए। जिसके लिए उन्होंने कई कोशिशें की। भगत सिंह ने अपने एक क्रांतिकारी साथी के साथ मिलकर नई दिल्ली की सेंट्रल एसेंबली में 8 अप्रैल 1929 को बम और पर्चें फेंके। जिसके बाद भारत का हर एक नागरिक जान गया कि आखिर भगत सिंह है कौन। भगत सिंह ने कहा था कि इस घटना से वो सिर्फ अंग्रेज सरकार को जगाना चाहते थे। भगत सिंह और उनके साथी दोनों को उसी दिन सेंट्रेल एसेंबली से गिरफ्तार कर लिया गया था। भगत सिंह की गिरफ्तारी के बाद उनके उपर और भी कई आरोप लगे। भगत सिंह के खिलाफ लाहौर षड्यंत्र मामला भी चला।
1929 से 1934 तक इन पांच बर्षों में देश के अलग-अलग भाषाओं की पत्रिकाओं में भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी आंदोलनों को लेकर इतनी सामग्री छपी कि ब्रिटिश सरकार को उन पर पाबंदी लगानी पड़ी।
भगत सिंह ने अंग्रेजों से लोहा लिया और असेंबली में बम से वार किया। यही वजह थी कि ब्रिटिश सरकार ने उन्हें और उनके दो साथियों को फांसी पर चढ़ा दिया। तीनों एक साथ ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ नारे के साथ हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए।