राजनीति में उम्रदराज नेताओं की जगह युवाओं को मौका देने की है जरूरत

राजनीति में उम्रदराज नेताओं की जगह युवाओं को मौका देने की है जरूरत

लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा के बाद से ही देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा इस पर कयास लगाना शुरू हो गया है। पर क्या किसी ने अब तक देश के पिछले प्रधानमंत्रियों की उम्र पर गौर किया है? भारत में जवाहरलाल नेहरू 58 साल की उम्र में पहले प्रधानमंत्री बने। जिसके बाद से लेकर अब तक प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले नेताओं की उम्र 50 साल थी केवल राजीव गांधी को छोड़कर। 2014 में जब 64 साल की उम्र में नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने एक नियम लागू किया था, की कोई भी नेता जिसकी उम्र 75 साल से ज्यादा होगी वह किसी भी राजनीतिक कार्य में भाग नहीं लेगा।

इसके बावजूद भारतीय संसद में ऐसे कई नेता मौजूद हैं जिनकी उम्र 70 साल से अधिक हैं। जिसका सबसे बड़ा प्रभाव पड़ता है जब नेता ज्यादातर बीमार रहते हैं और लंबी छुट्टियों पर चले जाते हैं। जिसके कारण वह अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पाते। वहीं अगर किसी युवा को राजनीति में आने का या किसी राज्य या देश संभालने का मौका दिया जाए, तो वह अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाएगा। साथ ही युवा नेता होने का एक यह भी फायदा है कि वह मानसिक और शारिरिक रूप से स्वस्थ होते हैं। साथ ही युवाओं की सहनशक्ति भी अधिक होती है। जिससे वह सही ढ़ंग से अपना कर्तव्य निभा सकते हैं। जिसके लिए हमें पहले युवाओं को राजनीति में जगह देने की जरूरत है। देश के नेताओं को परिवारवाद या वंशवाद की जगह युवाओं को राजनीति में अपनी भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यही कोशिश है Iyuva की। जो युवाओं के लिए राजनीति में 32% आरक्षण दिलाने की मांग करता है। जिससे देश के विकास को सही राह मिल सके और युवाओं के भविष्य के साथ-साथ देश नई तरक्की हासिल कर सके।

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