
पंजाब के लायलपुर शहर में जन्मे सुखदेव थापर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांन्तिकारी थे। जिन्हें 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था। इनकी शहादत को आज भी सम्पूर्ण भारत में सम्मान के नजरिए से देखा जाता है। सुखदेव हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे। वह पंजाब और उत्तर भारत के अन्य शहरों में क्रांतिकारी गतिविधियाँ सम्भालते थे। उनका जीवन देश और देश हित को पूरी तरह समर्पित था। उन्होंने लाहौर के नेशनल कालेज में युवाओं को भारत का गौरवशाली इतिहास बताकर उनमें देशभक्ति जगाने का काम भी किया था। लाहौर में ही सुखदेव ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। जिसका देश में युवाओं को स्वतंत्रता के महत्त्व को समझाना और इस दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करना था। सुखदेव ने तब बहुत-सी क्रांतिकारी क्रियाओं में भाग लिया था। उन्हीं में से 1929 में कैदियों की भूख हड़ताल भी है, जिसने ब्रिटिश सरकार की अमानवीय चेहरे को उजागर किया था।
फांसी लगने से पहले सुखदेव ने गांधी-इर्विन समझौते से जुड़ा एक खुला खत गांधी के नाम अंग्रेजी में लिखा था जिसमें इन्होंने महात्मा जी से कुछ गम्भीर प्रश्न किये थे। जिसके परिणाम यह हुआ कि निर्धारित तिथि और समय से पहले जेल मैनुअल के नियमों को दरकिनार रखते हुए सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह तीनों को लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी पर लटका कर मौत के घाट उतार दिया गया। इस तरह सुखदेव महज 23 साल की उम्र में शहीद हो गए।