
क्या देश की राजनीति में आज का युवा प्रचार-प्रसार सामग्री बन कर रह गया है? यह सवाल हर युवा के मन में है। देश में सत्ता की सरकार से लेकर अन्य राजनीतिक पार्टियां युवाओं को सिर्फ चुनावी विषय बनाने या चुनावों में प्रचार-प्रसार के लिए ही देखती हैं। आगामी 2019 के लोकसभा चुनावों में 282 सीटों पर किस्मत की चाबी युवा वोटरों के हाथों में है। पर क्या वह चाबी युवा क्यों नही बन पाया? चुनाव आयोग के विश्लेशण पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में 8.1 करोड़ मतदाता ऐसे होंगे, जिन्होंने पिछले आम चुनाव के बाद 18 वर्ष की उम्र पूरी की है। यानी देश के युवा सरकार बदलने या नई सरकार बनाने में एक अहम पहलू है। पर वही अहम पहलू खुद राजनीति से क्यों अछूता है?
2019 के लोकसभा चुनाव में दस करोड़ युवा पहली बार मतदान करेंगे। खास बात यह है कि युवा वोटरों का वोटिंग पैटर्न परिवार के परंपरागत वोटिंग पैटर्न से अलग होता है। युवाओं के पास सोशल मीडिया एक हथियार की तरह है। जाहिर है कि लोकसभा चुनाव का ओपिनियन मेकर युवा ही है। इसके चलते पार्टियों की नजर युवा चेहरों पर टिकी है। राजनीति में जनता ऐसा राजनेता या पीएम चुनना चाहती है जिनका विजन सिर्फ आज और अपना न देखें, कल और सबका भी सोचें। इसीलिए जरूरी है कि युवा अपना महत्व समझे और सोशल मीडिया का रास्ता अपनाकर देश की राजनीति में अपने हक के लिए लड़ें। जिसके लिए Iyuva युवाओं की राजनीति में 32% आरक्षण की मांग करता है जिससे देश के युवाओं को राजनीति में उनका हक मिल सकें।