चन्द्रशेखर आजाद ने दिखाई थी आजादी की राह

चन्द्रशेखर आजाद ने दिखाई थी आजादी की राह

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक जगह पर हुआ। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम ईमानदार, स्वाभिमानी, साहसी और वचन के पक्के थे। यही गुण चंद्रशेखर को अपने पिता से विरासत में मिले थे। क्रांतिकारी आंदोलन उग्र होने के दौरान चन्द्रशेखर आजाद ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी’ से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए।

17 दिसंबर, 1928 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और जैसे ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा। फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दाग कर उसे मौत के घाट उतार दिया। और जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने उसे मार दिया। इतना ही नहीं लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उनके इस कदम को समस्त भारत के क्रांतिकारियों खूब सराहा। जिसके बाद 1931 में इलाहबाद के अलफ्रेड पार्क में उन्होंने संकल्प किया कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी। इसीलिए उन्होंने 27 फरवरी, 1931 को इसी पार्क में खुद को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी।

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