
हिंदुस्तान की आजादी के लिए ना जाने हमारे देश के कितने युवा फांसी पर चढ़ गए। उन्हीं में से एक ऐसा नाम है खुदी राम बोस, जो सबसे कम उम्र में देश के लिए फांसी पर चढ़ गया। 3 दिसंबर, 1889 को बंगाल के मिदनापोर जिले में जन्में खुदीराम बोस क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे। बचपन में ही उनके माता-पिता का निधन हो दया था, जिसके बाद उनकी बड़ी बहन ने उन्हें पाला-पोसा था। देशप्रेम से भरे हुए खुदीराम ने बेहद कम उम्र से सभाओं में शामिल होने लगे थे।
देश को आजाद कराने के लिए पढ़ाई छोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वन्दे मातरम् पैंपलेट बांटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1905 में बंगाल के विभाजन के विरोध में चलाए गए आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।
6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम धमाके में भी उनका नाम सामने आया। जिसके बाद उन्हें एक क्रूर अंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी दी गई और इसमें उन्हें साथ मिला प्रफ्फुल चंद्र चाकी का। दोनों बिहार के मुजफ्फरपुर जिले पहुंचे और एक दिन मौका देखते ही उन्होंने किंग्सफोर्ड की बग्घी में बम फेंक दिया, लेकिन उस बग्घी में किंग्सफोर्ड मौजूद नहीं था, बल्कि एक दूसरे अंग्रेज़ अधिकारी की पत्नी और बेटी थीं। जिनकी इसमें मौत हो गई। जिसके बाद खुदीराम को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया और फिर फांसी की सजा सुनाई गयी। 11 अगस्त सन 1908 को उन्हें फाँसी दे दी गयी। मात्र 18 साल की उम्र में हाथ में भगवद गीता लेकर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़कर इतिहास रच दिया।