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1857 में विदेशियों के खिलाफ वीरता का परिचय देने वाले तात्या टोपे का जन्म सन् 1814 ई. में नासिक के पास पटौदा ज़िले में येवला नामक गांव में हुआ। तात्या टोपे देशस्थ कुलकर्णी परिवार में जन्मे थे। इनके पिता पेशवा बाजीराव द्वितीय के गृह-विभाग का काम देखते थे। तात्या का वास्तविक नाम ‘रामचंद्र पांडुरंग येवलकर’ था। ‘तात्या’ मात्र उपनाम था। तात्या शब्द का प्रयोग अधिक प्यार के लिए होता था। टोपे भी उनका उपनाम ही था, जो उनके साथ ही चिपका रहा। क्योंकि उनका परिवार मूलतः नासिक के निकट पटौदा ज़िले में छोटे से गांव येवला में रहता था, इसलिए उनका उपनाम येवलकर पड़ा।
रानी लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे उनके बचपन के दोस्त थे। अंग्रेजों ने जब पेशवा को पेंशन के रूप में मिलने वाले आठ लाख रूपये देना बंद कर दिया और उनके गोद लिए पुत्र को उनका उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया। तब तात्या टोपे ने अग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनानी शुरु कर दी। 1857 में अंग्रेजों से हुए युद्ध में हारने के बाद भी तात्या टोपे ने हार नही मानी और अपनी खुद की सेना बनाना शुरू कर दिया। तात्या ने अपनी सेना की मदद से कानपुर को आजाद कराने के लिए रणनीति तैयार की, लेकिन हैवलॉक ने बिठूर में भी अपनी सेना के साथ हमला कर दिया जहां तात्या टोपे अपनी सेना के साथ थे। इस युद्ध में भी तात्या की हार हुई पर वह भागने में कामयाब रहे। जिसके बाद तात्या की मौत पर कई कहानियां सामने आतीं रही है जिनमें से एक उनको अंग्रेजों द्वारा फांसी देने का किस्सा भी है।
तात्या टोपे के इस संघर्ष को भारत ने भी याद रखा है। इसी याद को कायम रखने के लिए भारत सरकार ने तात्या टोपे की तस्वीर वाला डाक टिकट भी जारी किया था। इसके अलावा उनके नाम पर मेमोरियल पार्क भी बनवाया गया जहां उनकी एक मूर्ति भी रखी गई है। ताकि देश का हर युवा उनकी देश के प्रति कुर्बानी को याद रख सके।