‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’ अदम्य साहस के साथ खूब लड़ी मर्दानी

‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’ अदम्य साहस के साथ खूब लड़ी मर्दानी

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झांसी के लिए ब्रिटिश शासन से लड़ने वाली रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को बनारस के एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्हें मणिकर्णिका नाम दिया गया और घर में मनु कहकर बुलाया गया था। 4 साल की उम्र में रानी लक्ष्मी बाई की मां का देहांत हो गया। पिता मोरोपंत तांबे बिठूर ज़िले के पेशवा के यहां काम करते थे इसलिए पेशवा ने उन्हें अपनी बेटी की तरह पाला और प्यार से छबीली नाम दिया। मणिकर्णिका की शादी झांसी के महाराजा राजा गंगाधर राव नेवलकर से हुई और देवी लक्ष्मी पर उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। जिसके बाद उन्होंने बेटे को जन्म दिया, लेकिन 4 माह में ही उसका निधन हो गया। जिसके बाद राजा गंगाधर ने अपने चचेरे भाई का बच्चा गोद लिया और उसे दामोदार राव नाम दिया।
झांसी भी 1857 की क्रांति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था जहां राजा गंगाधर राव की मौत के बाद अंग्रेज़ों ने रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र को राज्य देने से इनकार कर दिया। लेकिन हिम्मत न हारते हुए रानी महल में रहते हुए ही लक्ष्मी बाई ने झांसी को वापस पाने के लिए बागियों और महिलाओं की फ़ौज तैयार कर झांसी पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की। लेकिन एक बार फ़िर अंग्रेज़ों की डाली फ़ूट के चलते सितम्बर 1857 में पड़ोसी राज्य ओरछा और दतिया के राजाओं ने झांसी पर आक्रमण कर दिया।
रानी लक्ष्मी बाई ने उन्हें विफल तो कर दिया पर इसी बीच मौका देखकर अंग्रेज़ों ने भी झांसी को घेर लिया। इसीलिए रानी को अपने बेटे की जान बचाने के लिए भागना पड़ा लेकिन कालपी पहुंच कर तात्या टोपे की सहायता से लक्ष्मी बाई ने ग्वालियर के किले पर कब्ज़ा कर लिया और झांसी पर दोबारा चढ़ाई की। लेकिन इस बार घोड़े की असमर्थता के कारण अंग्रेज़ों से लड़ते हुए अपनी झांसी की रानी लक्ष्मी बाई सदा के लिए अमर हो गईं। लड़ाई की रिपोर्ट देते हुए ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने रानी लक्ष्मी बाई को अपने साम्राज्य के लिए ख़तरनाक बताया था।

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